Thursday, 17 September 2015

तिरस्कार

"पैसे की प्यासी दुनिया में ,
और हवस भरे इंसानों से ,
प्यार सहज नहीं  मिलता
 इसलिए तिरस्कार अपनाता हूँ,
ऊपर वाला दर्द सुने  मेरा,
इस चाहत में चिल्लाता हूँ ,
ऐ ठोकर मार के जाने वाले,
मैं भी मिट्टी का पुतला हूँ। … "

9 comments:

  1. touching lines!!! Well expressed!!

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  2. पहली पंक्ति से ही बहुत दमदार और यथार्थ रचना होने का आभास होने लगता है योगेश जी ! बहुत खूबसूरत शब्द लिखे हैं आपने

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