Tuesday 2 December 2014

खामोश रहना ही भला, जब जोर न कोई चला...

खामोश रहना ही भला,
जब जोर कोई चला,
आँखों से बहते नीर को,
दामन जो तेरा ना  मिला......
आरजू जो थी खुदा से ,
आह बनकर रह गयी,
तेरे साथ चलने की गुजारिश ,.
प्यास बनकर रह गयी....
उम्मीद की थी एक किरण ,
बादलों में जो घुल गयी ,
बारिश तो जोरों से हुई,
पर प्यास मेरी ना बुझी......

उम्मीद जो टूटने लगे,
तो आरजू  करता दिल ,
और हर आरजू होगी पूरी ,
उम्मीद करता है नादान  दिल

हर शख्श की आँखूं में , खौफ की तस्वीर है............

हर शख्श की आँखूं में ,
खौफ की तस्वीर है,
हर किसी को शिकायत यहाँ,
कैसी मेरी तकदीर है......
भीड़ में तन्हा सभी ,
और तन्हाई में शोर है,
हँसी में भी दर्द इतना,
दिल तेरा झकझोर दे........
हर दिल में हैं रंजिश भरी,
और नफ़रतें भी कम नहीं,
लोग मिलते हैं गले,
पर दूरियाँ मिटती नही....
जो दूरियाँ तय करने चले,
तो उम्र ही ढल जाएगी ,
एकतरफा कोशिश मेरी,
फासलों से हार जायेंगी.... :)

Sunday 30 November 2014

रंगमंच पर इस दुनिया के ...........

ओढ़े हुए चोले,
अलग अलग रंग के,
 रंगमंच पर इस दुनिया के ,
हम एहसास दिलाते हैं ऊपर वाले को,
हमारी अदायगी में कोई खोट नहीं,
हम जीते हैं अपना चरित्र ,
पूरी शिद्दत के साथ ,
मोहब्बत करते हैं बगावत के साथ,
और करते हैं नफरत शरारत के साथ
 बस एक शिकायत है इस कहानी में ,
ताउम्र हम जीते रहते हैं एक ही किरदार ,
निकलकर बाहर उस चरित्र से ,
न करते है सवाल, न तलासते हैं जवाब
जरुरी सिर्फ अपना किरदार निभाना नहीं,
जरुरी है निकलकर बाहर एक दायरे से,
समझना हर कलाकार को ,
कभी जीना उनके जज्बात को,
कभी समझना उनके हालात को,
समझना सार इस रंगमंच का,
और बाँटना वो ज्ञान ,
आने वाले हर कलाकार के साथ,
क्या पता खत्म होती कहानी के साथ
कब खत्म हो जाये अपने किरदार की माँग,
और बस चन्द किरदारूँ तक ,
सिमट कर रह जाये मेरा ज्ञान..... :)  

Thursday 27 November 2014

इस रूह को एक दिन हर सवाल से आजाद हो जाना है.......

इस रूह को एक दिन 
हर सवाल से आजाद हो जाना है ,
हर दर्द को बन कर राख ,
मिट्टी में मिल जाना है ,
या बन कर  धुआँ ,
आसमां तक बिखर जाना है. ……

बंदिशों से मन की ,
बेड़ियों से अपने अहम की ,
मैंने भी आजाद हो जाना है 
लम्बा है सफर ,
छोड़ने से पहले जीवन का रण ,
बहुत दूर तक जाना है ,
मेरी रूह को एक दिन
हर सवाल से आजाद हो जाना है ………

खुशबू मिट्टी की, मुझे जिन्दा होने का एहसास दिला देती है .....

इंसानियत खड़ी है जिस नींव पर 
और इन्सान होने के एहसास में
कभी-कभी  क्यों  खोट नजर आता है
चाहता हूँ शामिल होना तेरी जिंदगी में 
पर एहसास गुनाह का, 
ना जाने क्यूँ मन से उतर नहीं पाता है ,
हाँ जब होती है पहली बारिश, 
खुशबू मिट्टी की,
मुझे जिन्दा होने का एहसास दिला देती है 
जब-जब खो जाता हूँ गुरुर के अँधेरों में,
रोशनी सूरज की
मुझे बचाने चली आती है.। 
थक जाता हूँ अपमान के घूँट पी कर जब 
खुली हवा में थोड़ा साँस ले लेता हूँ ,
कभी माँग लेता हूँ खुद से माफ़ी ,
कभी खुद को माफ़ कर लेता हूँ... 

Sunday 16 November 2014

अर्थ मिलता है जीवन का , कभी छोटे संवाद में ...

"अर्थ मिलता है जीवन का ,
कभी छोटे संवाद में ,
कभी बड़े विवाद में ,
कभी अथक प्रयास से,
कभी तिरस्कार में ……"

Tuesday 11 November 2014

अपराध मेरा है.....

"अपराध मेरा है ,
जो किसी के साथ बुरा होता देख,
चुप हो जाता हूँ बस संवेदना जता कर
और करता हूँ प्रार्थना की ऐसा न हो ,
मेरे साथ.
हाँ अपराध मेरा है ,
जब मैं बात करता हूँ बदलाव की ,
खोखली हो चुकी व्यवस्था में,
और लेता हूँ सहारा उसी व्यवस्था का ,
जब बात आ जाये खुद पर.."

Wednesday 29 October 2014

ऐ दिल ना इतने रंग बदल..

"ऐ दिल ना इतने रंग बदल,
छोटी ख़ुशी के लिए न इतना मचल ,
न गम के डर से इतना सम्हल ,
जीने दे जिंदगी मुझे आजादी से ,
ऐ दिल ना इतने रंग बदल"

Monday 27 October 2014

तेरी हँसी .... :)

"एक अरमान जगाती,
हर लम्हे को जीवन देती ,
तेरी हँसी ...  :)
नये रँगों से रूबरू कराती,
सपने और हकीकत की दूरियाँ मिटाती,
तेरी हँसी मुझे सच्चाई के आईने दिखाती..
 एक वजह जीने की,
उगते सूरज सी चमकती ,
और शांत ढलते शाम सी ,
तेरी हँसी,
हिम्मत न हारने का का पैगाम देती,
 हाँ तेरी हँसी वजह है मेरे हँसने की ,
एक आश बुरा वक़्त गुजर जाने की ,
इशारा है तकदीर बदल जाने की,
तेरी ये हँसी .  :)  "

Wednesday 22 October 2014

मृत्यु

"मृत्यु है,
जलना हर पल एहसास में गुनाह के,
व्यथित मन से लड़ते रहना ,
अपने वजूद की तलाश में.…। 

मृत्यु है ,
जीते जी अहमियत खो देना,
किसी का ये एहसास दिलाना ,
कि तुम्हारे होने न होने से ,
तुम्हारे रुकने या जाने से  ,
कोई फर्क नहीं पड़ता ,
तुम्हारे माफ़ी मांगने से 
या टूट कर बिखर जाने से ………… "

काश निकल आते बाहर दायरे से नासमझी के अपने...

"काश निकल आते बाहर दायरे से नासमझी के अपने ,
ना गुनाहों का ये बोझ होता ,
ना गलत ये दौर होता ,
ना तपिश होती सवालों में इतनी ,
ना नश्तर से चुभते जवाब जिंदगी के। 

काश थोड़ा सब्र और रखा होता,
ये दौर अलग होता,
न यूँ बिखरने का शोक होता ,
ना ताउम्र बिछड़ने का अफ़सोस होता। ............. "

Tuesday 21 October 2014

जब कभी जिक्र आता है महफ़िल में तेरा...

"जब कभी जिक्र आता है महफ़िल में तेरा,
मैं ओढ़ लेता हूँ ,
चादर ख़ामोशी की ,
दलदल यादों का,
पुरानी बातों का ,
आकर्षित करता है अपनी ओर मुझे,
मैं अक्सर डूबता जाता हूँ गहराई में,
कोशिश में बाहर निकलने की……" 

Saturday 18 October 2014

तुझ में और खुदा में कोई फर्क नहीं.....

"तुझ में और खुदा में कोई फर्क नहीं,
न तू मेरी बात सुनता है,
न वो  मेरी फरियाद सुनता है 

वो अक्सर नाराज रहता है मुझसे ,
तू भी खुश नहीं मेरे करीब आने से ,
मैं उससे रिश्ता तोड़ लेता हूँ हारकर ,
और तू मुझे छोड़ जाता है फिर से 
उसी खुदा के भरोसे……… "