Sunday 30 November 2014

रंगमंच पर इस दुनिया के ...........

ओढ़े हुए चोले,
अलग अलग रंग के,
 रंगमंच पर इस दुनिया के ,
हम एहसास दिलाते हैं ऊपर वाले को,
हमारी अदायगी में कोई खोट नहीं,
हम जीते हैं अपना चरित्र ,
पूरी शिद्दत के साथ ,
मोहब्बत करते हैं बगावत के साथ,
और करते हैं नफरत शरारत के साथ
 बस एक शिकायत है इस कहानी में ,
ताउम्र हम जीते रहते हैं एक ही किरदार ,
निकलकर बाहर उस चरित्र से ,
न करते है सवाल, न तलासते हैं जवाब
जरुरी सिर्फ अपना किरदार निभाना नहीं,
जरुरी है निकलकर बाहर एक दायरे से,
समझना हर कलाकार को ,
कभी जीना उनके जज्बात को,
कभी समझना उनके हालात को,
समझना सार इस रंगमंच का,
और बाँटना वो ज्ञान ,
आने वाले हर कलाकार के साथ,
क्या पता खत्म होती कहानी के साथ
कब खत्म हो जाये अपने किरदार की माँग,
और बस चन्द किरदारूँ तक ,
सिमट कर रह जाये मेरा ज्ञान..... :)  

Thursday 27 November 2014

इस रूह को एक दिन हर सवाल से आजाद हो जाना है.......

इस रूह को एक दिन 
हर सवाल से आजाद हो जाना है ,
हर दर्द को बन कर राख ,
मिट्टी में मिल जाना है ,
या बन कर  धुआँ ,
आसमां तक बिखर जाना है. ……

बंदिशों से मन की ,
बेड़ियों से अपने अहम की ,
मैंने भी आजाद हो जाना है 
लम्बा है सफर ,
छोड़ने से पहले जीवन का रण ,
बहुत दूर तक जाना है ,
मेरी रूह को एक दिन
हर सवाल से आजाद हो जाना है ………

खुशबू मिट्टी की, मुझे जिन्दा होने का एहसास दिला देती है .....

इंसानियत खड़ी है जिस नींव पर 
और इन्सान होने के एहसास में
कभी-कभी  क्यों  खोट नजर आता है
चाहता हूँ शामिल होना तेरी जिंदगी में 
पर एहसास गुनाह का, 
ना जाने क्यूँ मन से उतर नहीं पाता है ,
हाँ जब होती है पहली बारिश, 
खुशबू मिट्टी की,
मुझे जिन्दा होने का एहसास दिला देती है 
जब-जब खो जाता हूँ गुरुर के अँधेरों में,
रोशनी सूरज की
मुझे बचाने चली आती है.। 
थक जाता हूँ अपमान के घूँट पी कर जब 
खुली हवा में थोड़ा साँस ले लेता हूँ ,
कभी माँग लेता हूँ खुद से माफ़ी ,
कभी खुद को माफ़ कर लेता हूँ... 

Sunday 16 November 2014

अर्थ मिलता है जीवन का , कभी छोटे संवाद में ...

"अर्थ मिलता है जीवन का ,
कभी छोटे संवाद में ,
कभी बड़े विवाद में ,
कभी अथक प्रयास से,
कभी तिरस्कार में ……"

Tuesday 11 November 2014

अपराध मेरा है.....

"अपराध मेरा है ,
जो किसी के साथ बुरा होता देख,
चुप हो जाता हूँ बस संवेदना जता कर
और करता हूँ प्रार्थना की ऐसा न हो ,
मेरे साथ.
हाँ अपराध मेरा है ,
जब मैं बात करता हूँ बदलाव की ,
खोखली हो चुकी व्यवस्था में,
और लेता हूँ सहारा उसी व्यवस्था का ,
जब बात आ जाये खुद पर.."