Sunday 8 February 2015

गलतियाँ हो जाती हैं मुझसे, मैं कोई खुदा तो नहीं.....

उम्मीदें मेरी,
मेरे मन का भ्रम,
जो पूरी न हो पायी ,
होती है घुटन ,
शिकायतें मेरी ,
हैं मेरी उलझन ,
ऐसा नहीं इस उलझन से पार नहीं पता ,
पर अतीत मेरा अक्सर ,
एक नए रूप में है लौट आता.…… 
मैं अपने अतीत से जुदा तो नहीं,
गलतियाँ हो जाती हैं मुझसे,
मैं कोई खुदा तो नहीं। …… 
इंसान हूँ,
इंसान होने का फर्ज अदा करता हूँ ,
माँग कर माफ़ी ,
ऊपर वाले का क़र्ज़ अदा करता हूँ। 
माफ़ी मिल भी जाये ,
पर गुनाह तो साथ रहेगा,
मेरे हर कर्म का ,
शायद यहीं हिसाब होगा……

घाव जो थे हरे वक़्त के साथ अनजाने में भरे.......

घाव जो थे हरे 
वक़्त के साथ अनजाने में भरे 
पर एहसास गुनाह के 
लौट आते हैं 
हर अँधेरी रात … 
एक सुगबुगाहट होती है 
हर लम्हे हर घड़ी ,
बीतते वक़्त के साथ 
उम्मीद जगती है माफ़ी की ,
जब -जब सुलगती  है 
गुनाहों की आग....... 

आज माफ़ी मिल जाये ,
 या यूँ ही दिन ढल जाये,
जैसे ढलता है हर रोज,
और फिर वही अफ़सोस,
वही गुनाह का बोझ ,
लेकर चला मैं अपने साथ ,
और इन्ही ख्याल में ,
गुजारी आज की रात…