Monday, 14 September 2015

मन वो नहीं जो हारकर , छोड़ दे हर आश को ....

मन वो नहीं जो हारकर ,
छोड़ दे हर आश को ,
पथ है अगर मुश्किल बड़ा ,
तो छोड़ दे विश्वास क्यों  ...
क्यूँ मूँद लूँ आँखे यहाँ ,
जानकर सच झूठ को ,
क्यूँ छल करूँ खुद से यहाँ ,
स्वीकार कर हार को ……
क्यूँ लज्जित करूँ मानव जात को ,
क्यूँ दोष दूँ हालात को,
क्यूँ झुकाये शीश अपना ,
 दोष दूँ मैं भाग्य को ……।  "

14 comments:

  1. beautifully put......मन के हारे हार है मन के जीते जीत ......

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    1. Thank you Sunaina ji... :) सही कहा आपने। मन हार नहीं माने तो सबकुछ जीता जा सकता है। :-)

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    1. धन्यवाद राकेश जी :)

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  3. वाह . बहुत उम्दा

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