Wednesday, 7 January 2015

रोटी सुकून से मिल जाती है, मन बैचैनी का आदी है.....

रोटी सुकून से मिल जाती है,
मन बैचैनी का आदी है,
ये मन मैला है और गन्दा है,
खुदगर्जी में अँधा है

देख व्यथा,करुणा और तिरस्कार,
मेरे मन में जागा है बैर भाव,
अपनी इस गलती पर शर्मिन्दा हूँ,
बेशर्मी के परदे में छिपा हुआ
बेगैरत हूँ , पर जिन्दा हूँ,
इन्सान हूँ ,
गलतियों का पुलिंदा हूँ। …… 

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