Tuesday, 6 January 2015

मैंने अपने ख्वाबों को, बिखरते देखा है बादलों सा...

मैंने अपने ख्वाबों को,
बिखरते देखा है बादलों सा ,
और बरसते हुए पाया ,
जब - जब वो टकराये ,
उनके गुरुर की चट्टान से……
मैंने उन्हें धुला-धुला सा पाया ,
हर बरसात के बाद,
और खिला हुआ पाया,
मुश्किल वक़्त गुजरने के साथ..........
ये ख्वाब मेरे , रहते हैं साथ मेरे,
चलते हैं,बिखरते हैं पर ठहरते नहीं ,
झुलसते हैं, बरसते हैं ,
पर झुकते नहीं,
मुझे गम नहीं इनके टूट जाने का,
पर गवारा नहीं झुकना इनका .......

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